भगती का मनवा बड़द घणा भारी।
लेवैला कोई सन्‍त सूरमा द्‌यो चरणा झारी॥(टेर)


भगती भारत जुगां-जुगां सूं जीवां की प्यारी।
कायर ज्यानै काम न आवै, बात करै न्यारी॥
भगती का मनवा बड़द घणा भारी……॥(1)


च्यार चोक भगती का सतगुरु दिया न्याई कारी।
च्यार वरण की सांची भगती, कर सोई मणदारी॥
भगती का मनवा बड़द घणा भारी……॥(2)


भगती करी एक राजा हरिचन्दर नै, नेक नांव सारी।
तीनो पराणी कासी मै बीतग्या, बचन नहीं हारी॥
भगती का मनवा बड़द घणा भारी……॥(3)


देव रिसी नारद मुनी ग्यानी, इन्दर बलकारी।
पिता पुत्‍तर पै कोप किया, तब गिरवर सूं डारी॥
भगती का मनवा बड़द घणा भारी……॥(4)


हीरानन्‍दजी सतगुरु दाता, मिलग्या तपदारी।
भजनानन्द सरणागत आयो, जाऊं बलहारी॥
भगती का मनवा बड़द घणा भारी……॥(5)