देवयों मन म्हे करो विचार पावोगी मनख्यां दे अवतार॥(टेर)


मत पूजै तू देवी-देवता, मन म्हे सोच विचार।
पति देव की सेवा करलै होजा भवजल पार॥
देवयों मन म्हे करो विचार पावोगी मनख्यां……॥(1)


जप-तप की तू छोड भावना, सुणो बचन चित धार।
पति देव की सेवा सूं सरग मिलै यूं खैते है करतार॥
देवयों मन म्हे करो विचार पावोगी मनख्यां……॥(2)


तीरत न्हाबा तू मत जावै अर तज अवगुण बेकार।
जियां जावा जीव का तो पति सेवा मन धार॥
देवयों मन म्हे करो विचार पावोगी मनख्यां……॥(3)


तरिया कै लिये जग मै, पति सेवा ई सार है।
पति देव की सेवा करती वा सतवंती नार है॥
देवयों मन म्हे करो विचार पावोगी मनख्यां……॥(4)


साईब की दरगा मै उसका होता सतकार है।
नारियों के पांच धरम, सुनना चित लगार है।
सास-ससुर, पति, गुरु सेवा मै थारा अधिकार है।
पांचवां धरम सत म्हे भी गहर पुरुस बेकार है।
ईंन पांचो का पालन करती, ऊंनका बेड़ा पार है॥
देवयों मन म्हे करो विचार पावोगी मनख्यां……॥(5)


सिक्सा सुणकर, दिल मै धारो होई जनम को सुधार है।
जीवाराम खहे ईं वाणी सूं थारी नईया पार है॥
देवयों मन म्हे करो विचार पावोगी मनख्यां……॥(6)