एक बार एक गाँव मै एक सोपाल नाँव को आदमी रै छो। वो एक नन्दी मै सूँ मच्‍छ्याँ नखाळर अपणा बाळकाँ नै पाळै छो। एक दन वो नन्दी मै मच्‍छ्याँ नखाळबा गियो तो जाळ मै मच्‍छ्याँ तो आई कोनै अर एक कापचो जाळ मै उळजर आग्यो। सोपाल ऊँ कापचा नै नन्दी की डाई पैई छोड दियो। सोपाल घराँ आबै लाग्योर वो कापचो खियो, म्ह घणा दना को ईं पाणी मै पड़्यो छो। आज तू मन बारै नखाळ दियो तो घणो बडिया काम कर्यो।
        वो सोपाल नै एक मून्दड़ी दे दियो अर खियो कै, तन काँई भी काम करणो है तो, ईं मून्दड़ी नै आँगळी मै पहर ही करज्यो। पण या मून्दड़ी भलाई को ही काम करैली। एक बार घणा जोर की बरसाँत आई अर बाढ आग्यो, जिसूँ सगळो गाँव पाणी मै डूबग्यो। सोपाल ऊँ मून्दड़ी नै आँगळी मै पहर गाँव का आदम्याँ नै पाणी मै सूँ नखाळ लियो। ईं बात को ठीक एक राजा नै पड़ग्यो। वो राजो सोपाल नै बलार खियो कै, या मून्दड़ी तो तू मन दैदै अर तू काँई माँगै-सो माँगलै। सोपाल वा मून्दड़ी राजा नै दे दियो अर बदला मै काँई भी कोन लियो। राजा नै ऊँ मून्दड़ी की उस्यारी आगी अर वो दूसरा राजा का राजपाट नै लेबा की बच्यार कर लियो। वो राजो दूसरा राजा सूँ लड़बा लागग्यो। पाछै वो ऊँ राजा सूँ हारग्यो। लड़ाई मै हारताँई राजा नै सोपाल पै रोस आग्यो। राजो रोसाँ मरतो सोपाल नै खियो कै, ईं मून्दड़ी सूँ तो काँई भी कोन हियो, तू तो मन झूँट्याईं बहखा दियो। म्हारो सगळो राजपाट लड़ाई मै लागग्यो। पाछै सोपाल खियो कै, या मून्दड़ी तो भलाई को ही काम करै छै, या बराई को काम नै करै।
        सीख :- कद्‌याँ भी कोई पै घात न घड़णो चाईजे।