ढूंढाड़ का लोगां की मायड़ भासा छै, ढूँढाड़ी।
ढूंढाड़ का लोग-लुगायां की पचाण छै, ढूँढाड़ी॥(1)

ढूँढाड़ी मै बोलां, ढूँढाड़ी मै गांवां भजन अर गीत।
यो काम आज को कोनै, यातो बरसां पराणी रीत॥(2)

ढूँढाड़ी, कोयल सी प्यारी, मीठा ईंका गीत।
ईनै ई बोलो, ईंमै ई गावो, या तगड़ी पाळै परीत॥(3)

कंठां मांही रांखै लुगायां, जियां नोसर हार।
जनम सूं मरबा तक बोलै, करै बाळक सो प्यार॥(4)

हिन्दी पडां, चाहे अंगरेजी पडां, चाहे करां बातां पंजापी मै।
मनड़ा की बातां जद बी करां, म्हे करां बात ढूँढाड़ी मै॥(5)

ढूँढाड़ी मीठी घणी या लागै घणी सुवाद।
थोड़ा दना सीखल्यो, बोलैला थे निरबान्द॥(6)

ढूँढाड़ी रा हार का मोती, झड़्या कई ठोर।
नमन करूं वां जोहर्यां नै, ज्यो ल्यावै यानै बटोर॥(7)

नजरां मांही परख काम नै, नरख्या ये ढूंढाड़।
धन्यवाद छै निरमाण नै, ज्यो खोल्या बजड़ कुंवाड़॥(8)

कवि
मोहनलाल बैरवा
ग्राम, पोस्ट- चनानी
तहसील-निवाई, जिला-टोंक
राजस्थान-304021