एक बार एक गाँव मै एक लुगाई छी। वा एक दन मादू नाँव का आदमी नै पकड़र अकबर बादस्या कन लेगी अर बोली, बादस्याजी यो आदमी म्हारो सगळो गहणो खोल लियो। अकबर, मादू नै खियो, ईं लुगाई को गहणो कोड़ै छै? मादू खियो, बादस्याजी या लुगाई तो झूँट बोलरी छै। राजो ईं बात नै सुणर चक्कर मै पड़ग्यो अर वो बीरबल नै खियो, याँको न्याई कर। बीरबल तो न्याई करबा मै राजा सूँ भी तेज छो।
बीरबल, लुगाई नै खियो, थारो गहणो कतरा को छो? वा लुगाई बोली, म्हारो गहणो तो च्यार हजार रफ्याँ को छो। बीरबल खुद कन सूँ च्यार हजार रफ्या काडर मादू नै दे दियो अर ऊँनै खियो, म्ह बताऊँ जद्याँ ये रफ्याँ लुगाई नै दै दीज्यो। बीरबल, मादू नै खियो, या लुगाई झूँट नै बोल सकै या तो च्यार हजार रफ्या दै या फेर ईंको गहणो दै। मादू च्यार हजार रफ्याँ नै थेला मै घालर ऊँ लुगाई नै दे दियो। वा लुगाई रफ्याँ नै लेर बारै नकळताँई बीरबल, मादू नै खियो, तू अब जार ऊँ लुगाई कन सूँ वाँ रफ्याँ नै कुसकार लिया। वो आदमी बारै जार ऊँ लुगाई कन सूँ रफ्या कुसकाबा की कोसिस कर्यो पण ऊँकी पार कोन पड़ी। वा लुगाई ऊँ आदमी नै पकड़र बीरबल कन लेगी अर बोली यो आदमी म्हारा याँ रफ्याँ नै भी कुसकाबा की कर्यो पण मै छोडी ई कोनै। बीरबल जाणग्यो कै या लुगाई तो याँ रफ्या नै ही कोन छोडी तो गहणो काँई को खोलबा दियेली। पाछै बीरबल ऊँ आदमी नै तो छोड दियो अर ऊँ लुगाई नै पकड़र जेळ मै बन्द कर दियो।
सीख :- कद्याँ भी झूँट नै बोलणो चाईजे।
- थाँकी राय द्यो