ढूँढाड़ी भजन

गुरुजी नै ध्यालै रै

गुरुजी नै ध्यालै रै, थारा जनम-जनम का दुखड़ा मिटालै रै।
जनम-मरण का काट मोरछा, परित पुरबली पालै रै॥(टेर)


सतगुरु दाता बेद बण आया, करमारी नबज दखालै रै।
देख नबज समजकर दाता, करम नाड़ को चालै रै॥
गुरुजी नै ध्यालै रै, थारा जनम-जनम का......॥(1)

आवै नै जावै, मरै नहीं जनमै

आवै नै जावै, मरै नहीं जनमै।
नहीं धूप, नहीं छाया, कबीर म्हानै एसा अणघड़ ध्याया॥(टेर)


धरती नहीं ज्यां जनम धारिया, नीर नहीं ज्यां न्हाया।
दाई-मांई का काम नहीं छा, ना कोई गोद खिलाया॥
कबीर म्हानै एसा अणघड़ ध्याया……॥(1)

थारा सतगुरु पाड़रिया हेला

थारा सतगुरु पाड़रिया हेला रै।
मन राम नै सुमरले गेला, मन म्हारा हरि नै सुमरले गेला॥(टेर)


एक डाळ दो पंछी बैठ्या कोण गुरु कुण चेला।
गुरुजी की करणी मै गुरु चल जासी, चेला की करणी चेला॥
थारा सतगुरु पाड़रिया हेला रै ……॥(1)

अचरज देख्यां भारी भाई सन्तां

अचरज देख्यां भारी भाई सन्तां, अचरज देख्यां भारी जी॥(टेर)


गगन बीच अमरत का कुवा कोई, भरिया सदां सुखकारी जी।
बंगला पुरुस चडै रै बिन सीडी, पीवै भर-भर झारी जी॥
अचरज देख्यां भारी भाई सन्तां, अचरज देख्यां……॥(1)

म्हारा गुरुजी नै करदी महर

म्हारा गुरुजी नै करदी महर भव सूं तारण की॥(टेर)


सतगुरु दाता भेद मिटाया, सेरी तो बताई सब सारण की॥
म्हारा गुरुजी नै करदी महर भव सूं तारण की……॥(1)


काम, करोद, मद लोब लुटेरा, जुगती बताई ज्यानै मारण की॥
म्हारा गुरुजी नै करदी महर भव सूं तारण की……॥(2)

पंछीड़ा लाल सूतो कांई चादर ताण


पंछीड़ा लाल सूतो कांई चादर ताण।
बाल-जुवानी दोनी बीती, छोड पाछली आण।
अब तो अवसर बीत्यो जावै छोड पाछली आण॥(टेर)


बालपणो हंस-खेल गमायो, दे दे गोदी ताण।
बाल-सखा संग करी लड़ाई, रांखी कोनै काण॥
पंछीड़ा लाल सूतो कांई चादर ताण……॥(1)

भाई-भाई आणंद आयो रै

भाई-भाई आणंद आयो रै।
सतगुरु अमरत पान करायो रै॥(टेर)


सबद कटोरी ग्यान की भरकर सतगुरु मोई पिलायो रै।
पितांई दोस्त भयो तन मन सब तांप न सांयो रै॥
भाई-भाई आणंद आयो रै……॥(1)

देवयों मन म्हे करो विचार

देवयों मन म्हे करो विचार पावोगी मनख्यां दे अवतार॥(टेर)


मत पूजै तू देवी-देवता, मन म्हे सोच विचार।
पति देव की सेवा करलै होजा भवजल पार॥
देवयों मन म्हे करो विचार पावोगी मनख्यां……॥(1)

मन लोबी नहीं बिचारी रै

मन लोबी नहीं बिचारी रै।
थारी म्हारी करता उमर हैगी सारी रै॥(टेर)


नो-दस मास गरब मै रांख्यो माता थारी रै।
बारै निखाळो नै पूरण भगती करसूं थारी रै॥
मन लोबी नहीं बिचारी रै……॥(1)