अचरज देख्यां भारी भाई सन्तां, अचरज देख्यां भारी जी॥(टेर)


गगन बीच अमरत का कुवा कोई, भरिया सदां सुखकारी जी।
बंगला पुरुस चडै रै बिन सीडी, पीवै भर-भर झारी जी॥
अचरज देख्यां भारी भाई सन्तां, अचरज देख्यां……॥(1)


बिना धरती ज्यानै महल चुणाया, ज्यां मै जोत उजाळी जी।
आन्दा देखत मगन होत है, बात बतावै सारी जी॥
अचरज देख्यां भारी भाई सन्तां, अचरज देख्यां……॥(2)


बिना रै बजायां नित-उठ बाजै, झालर संक नंगारी जी।
बहरा सुण-सुण मगन होत है, सुद-बुद खो दिया सारी जी॥
अचरज देख्यां भारी भाई सन्तां, अचरज देख्यां……॥(3)


जिंदा मरकर फिर भी जीज्या, बिना भोजन बलधारी जी।
बरमा नन्द सन्तजन बुरळा, जाणै बात हमारी जी॥
अचरज देख्यां भारी भाई सन्तां, अचरज देख्यां……॥(4)