ढूँढाड़ी पेळ्याँ 51-100
एक नन्दी पै सादू बैठ्यो, करै हरी को जाप। माँस-मच्छी नै उत्तम मानै, करै कन्द मूळ सूँ पाप।
बुगलो
एक टाँग पै उबी रैवै, एक ठोर पै अड़ी रैवै। अन्देरा नै दूर भगावै, धीरै-धीरै गळती जावै।
मूँगबत्ती
एक साथण को अस्यो चाळो, म्ह छूँ गोरी, वा छै काळी।
छाया
एक कागलो अस्यो देख्या, बना पाँखड़ा उडतो देख्या। सूखी डाळ्याँ पै बैठ्यो देख्या।
चाकलो
ओलक्यो न पोलक्यो, छोरा-छोरी कुण मेलग्यो।
चणा की टाँट
काळी छै, पण काजळ नहीं, लाम्बी छै, पण नागण नहीं। बळ खावै छै, पण डोर नहीं, बाँदै छै, पण ढोर नहीं।
बाळाँ की चोटी
काळी माँ का गोरा पूत, दोन्याँ की भारी करतूत। भाई का भाई सूँ त्याग, एक सीळो दूसरो आग।
चाँद-सूरज
अगल-बगल मै घास-पूस, बीच मै तबेलो। सारै दन भीड़-भाड़ छै, रात मै अकेलो।
पणघट
आसमानी बादळी, थररावै थारो नेफो। खिज्यो राजा भोज नै, उठा टाँगड़ी देखो।
संगाड़ो
च्यार पग, पण गाई नहीं, लाम्बी पूँछ, पण बान्दरो नहीं। माथा पै केसर, पण मुरगो नहीं।
करगाँट्यो
छाँटै छै, काटै छै, पीसै छै, बाँटै छै। पण गोळी खाबा का नांव सूँ नटै छै।
तास
धोळी धरती, काळो बीज, बाहबाळो गावै गीत।
पैन-कोपी
बना पाणी रूप न ले, पाणी सूँ गळ जावै। आग लगार फूँक दे तो, अजर-अमर है जावै।
ईंट
अस्यो कस्यो जन्दावर छै, जे अण्डा कोन दे बच्या पैदा करै छै।
बागळ
अस्सी काँई चीज छै, जे काट्याँ सूँ कटै कोनै अर पकड़्याँ सूँ पकड़ मै न आवै।
छाया
माँई बळै अर बेटी सीजै।
आरेड़
म्ह घालू एक बार, वा घालै बार-बार।
माँग
रागो चालै रगबग, तीन मूण्डा दस पग।
सूंज
एक गुल्यावड़ी असी, जे पूँछ सूँ पाणी पीवै।
चमनी
सात गाँठ की लाम्बी लाठी, गाँठ-गाँठ मै रस। जे ईंको अरथ बता दे, रफ्या देद्यूँ दस।
साँटो
सुण-सुणरै, सासू का जाया, खाट ऊपर दो पाया।
सींग
तीन चरण धरत्याँ टकै, एक चरण आकास। एक अचम्बो अस्यो देख्या, मूरती कै पास।
गण्डकड़ो
एक लुगाई ऊँकै च्यार मोट्यार।
खाट
आँकड़-बाँकड़ बेलड़ी, अळ्याँ गळ्याँ मै रस। ईं फेळी को अरथ बता, रफ्या देद्यूँ दस।
जलेबी
एक गुफा का दो रखवाळा, दोनी लाम्बा दोनी काळा।
मुछ्याँ
मूण्डो काळो, काम बडो, कद छोटो, नांव बडो।
कलम
एक चीज असी, वानै लूँगती न खा सकी। लाख पची, पण न पा सकी।
अंगूर
अस्यो कस्यो काम छै, जे मोट्यार एक बार करै छै अर लुगाई नतकई करै छै।
माँग भरबो
असी काँई चीज छै, जे गरीब हो या भागवान। सब नै प्याली लेर उबो हैणो पड़ै छै।
पतासी की दुकान
हरी डब्बी, लाल डब्बी। गोरी चाली सासरै बलम टसकै।
मरची
हड़-हड़ कुवा मै पड़।
नेज-बाल्टी
एक कूण्डो मोत्याँ सूँ भर्यो, सगळा का माथा पै उन्दो धर्यो। च्यारूँमेर कूण्डो फर्यो, फेर भी एक मोती न पड़्यो।
आकास
हाथाँ मै जावै, स्याम सुंवाँरई न्हावै। पेट बडो, नाड़ छोटी, भर्यो माथा माळै आवै।
हाण्डी
गोरी-गोरी राणी, कुण भरै पाणी। ले हाथ मै, हैज्या पाणी-पाणी।
बरफ
धोळो डील, लाम्बी नाड़, एक पग, दो आँख्याँ। दीखबा मै सीदो-सादो, पण घणा कपट सूँ झाँख्याँ।
बुगलो
एक धन अस्यो जे न गळै, न सड़ै। बाँटै तो बडै अर न बाँटै तो घटै।
ग्यान
राई की भी आदी राई, वा छै काँई। जे ईं फेळी को अरथ बतादे, सो रफ्या अर सगाई।
तमाकू को बीज
लाल घोड़ी झाबरी पूँछ। न जाणै तो थारी माँई नै पूच।
गाजर
लाल-लाल रंग, पीठ लैर्यादार। काटै तो मांयाँ बैठ्यो, पैरादार।
छुँवारो
आसमानी चून्दड़ी, जड़्याँ सितारा माँई। वो दीखै कोनै, जद बादळो घणाई।
आकास
राजो एक महल बणायो, ताल नहीं पण नांव कमायो। जे भी ऊँमै, सूतो गियो, बैठ्यो हैर बारै आयो।
डाखानो
पाणी को रूप छै, भाळ ईंकी मोत छै, गरमी ऊँकी ज्यान छै।
पसीनो
गोळ-गोळ चकरी, नस नस मै रस। झटपट नांव बतावो, गणो एक दो दस।
जलेबी
अंगा-चंगा नो नाड़ा चटकावै छी। मोट्याराँ मै खेल कबड्डी, भर-भर भात बगावै छी।
ताकड़ी
आलू छूँ, भालू छूँ मई-जून मै चालू छूँ।
लू
ऊँको डर जद छाती पै आवै, चोखो-भलो भी काणो है जावै। सेर भी डरपतो जावै, जिपै थूँकै वोई मर जावै।
बंदूक
एक चीज म्हे देख्या, छाती पै ऊँकै दाँत। बना मूण्डा सूँ राग नखाळै, करै मीठी बात।
पेटीबाजो
एक जन्दावर अस्यो देख्या, तळाव कनारै रैवै। मूण्डा सूँ आग उगेलै, दारू पूँछ सूँ पीवै।
दीपक
एक डोकरो अस्यो देख्या, वो कोन करै बात। सीदो-सादो लागै छै, पण वो राँखै पेट मै दाँत।
अनार
एक फूल अस्यो, वो माथा पै सुवातो। तावड़ा-बरखाँ मै खिलतो, छाया मै मुरजा जातो।
छाँगी
अबार की राय