भाई-भाई आणंद आयो रै।
सतगुरु अमरत पान करायो रै॥(टेर)


सबद कटोरी ग्यान की भरकर सतगुरु मोई पिलायो रै।
पितांई दोस्त भयो तन मन सब तांप न सांयो रै॥
भाई-भाई आणंद आयो रै……॥(1)


सरव दुखां की मूल अविद्‌या पल मै दूर हटायो रै।
जेसे सुखी बास म्हे टुक आग लगायो रै॥
भाई-भाई आणंद आयो रै……॥(2)


परमानन्द भयो घट भीतर जीवन मुक्‍त करायो रै।
सबी मनोरत पूरण भया मन चित फळ पायो रै॥
भाई-भाई आणंद आयो रै……॥(3)


रतनपुरी जी म्हानै समरत मिलया जीवन निज स्वरूप लिखायो रै।
मस्त भयो सिव राम गुरांजी की मईमा गायो रै॥
भाई-भाई आणंद आयो रै……॥(4)