थारा सतगुरु पाड़रिया हेला रै।
मन राम नै सुमरले गेला, मन म्हारा हरि नै सुमरले गेला॥(टेर)


एक डाळ दो पंछी बैठ्या कोण गुरु कुण चेला।
गुरुजी की करणी मै गुरु चल जासी, चेला की करणी चेला॥
थारा सतगुरु पाड़रिया हेला रै ……॥(1)


मन माळी का नै बाग लगाया, बीच लगाया केळा।
काचा पाका की जात न जाणै, तोड़्या फूल नवेला॥
थारा सतगुरु पाड़रिया हेला रै……॥(2)


राजा का नै कुण्ड खुदाया, बीच रखाया गेला।
पापी मन तू जा कर धोलै, अपना मन का मेला॥
थारा सतगुरु पाड़रिया हेला रै……॥(3)


कोडी-कोडी माया जोड़ी, जोड़ बणाया ठेला।
कहत कबीर सुणो भाई सन्तां संग जावे नहीं ठेला॥
थारा सतगुरु पाड़रिया हेला रै……॥(4)