पंछीड़ा लाल सूतो कांई चादर ताण।
बाल-जुवानी दोनी बीती, छोड पाछली आण।
अब तो अवसर बीत्यो जावै छोड पाछली आण॥(टेर)


बालपणो हंस-खेल गमायो, दे दे गोदी ताण।
बाल-सखा संग करी लड़ाई, रांखी कोनै काण॥
पंछीड़ा लाल सूतो कांई चादर ताण……॥(1)


जुवान हियो तब सादी किनी, आडै फरगी भाण।
ऊं बहणा की एक न मान्यो, घर मै घाल्यो घाण॥
पंछीड़ा लाल सूतो कांई चादर ताण……॥(2)


रोज-रोज तू फस्यो जाळ मै, तन कर लियो हाण।
रस-कस निखळ, गाल बैठग्या, मटगी खींचा-ताण॥
पंछीड़ा लाल सूतो कांई चादर ताण……॥(3)


कफ-खांसी दुख देबा लागी, मोत सांकड़ै जाण।
साथी-लाठी ले ली हाथ मै, अब तो हरि नै जाण॥
पंछीड़ा लाल सूतो कांई चादर ताण……॥(4)


अतरी खारी हैगी तोमै, अब तो कर कुछ काण।
दास रूड़मल कथकर गावै, जाण सकै तो जाण॥
पंछीड़ा लाल सूतो कांई चादर ताण……॥(5)