एक बार एक गण्डक छो। वो घणो भूखो छो। वो खाणा कै ताणी अण्डि-उण्डी भहरार्यो छो। भहराताँ-भहराताँ ऊनै एक रोटी को टूकड़ो मल्यो। वो ऊँ टूकड़ा नै लेर एक नन्दी की कन्दार कै सार्रै-सार्रै जार्यो छो। गण्डक नन्दी का पाणी ओड़ी देख्यो तो, पाणी मै ऊँनै ऊँकी छाया दीखी। लालची गण्डकड़ो पाणी मै दीखेड़ी रोटी नै लेबा की सोच्यो अर वो ऊँका ओड़ी देखर भूसबा लागग्यो। वो भूसबा लाग्योर ऊँकी रोटी को टूकड़ो भी पाणी मै पड़ग्यो। पाछै वो घणो पसतायो।
सीख :- कद्याँ भी लोभ नै करणो चाईजे।
- थाँकी राय द्यो