एक बार एक ऊँट अर एक स्याळ दोनी बायेला छा। एक दन वै दोनी एक खेत मै काकड़ी खरबूजा खाबा चलग्या। स्याळ तो बेगो-सोक धापग्यो अर वो ऊँट नै खियो कै, बायेला मन तो हूँकबा की मनमै आरी छै। ऊँट बोल्यो, बायेला डटजा म्ह हालताणी धाप्यो कोनै, थोड़ी देर पाछै हूँक लिज्यो। पण स्याळ तो हूँकबा लागग्यो। स्याळ की आवाज सुणर खेत को धणी आर ऊँट नै चरतो देख लियो। स्याळ तो भागग्यो अर पाळती लाठी सूँ ऊँट नै कूटबा लागग्यो। ऊँट अपणै घराँ आग्यो। थोड़ा दना पाछै स्याळ भागतो-भागतो जार्यो छो, तो गेला मै नन्दी आरी छी। नन्दी मै पाणी घणा जोर सूँ बहर्यो छो, स्याळ उण्डै डटग्यो। उण्डै ऊँट भी भाग्यो-भाग्यो आयो। ऊँट नै आताँई स्याळ घणी हुँस्यारी सूँ खियो कै, बायेला नन्दी घणी जोर की आरी छै, तू मन थारै माळै बठाणर नन्दी कै पैलोड़ी ले चाल। ऊँट स्याळ नै बठाण लियो अर नन्दी कै अद्बीच मै जार डटग्यो। ऊँट फेर, स्याळ नै खियो कै, बायेला मन तो लोटणी आरी छै। स्याळ बोल्यो, बायेला मन पैली तीर पै छोड्या फेर लोट लिज्यो। पण ऊँट नै तो बदलो लेणो छो अर वो ऊँट नन्दी कै बीच मै ही लोटग्यो। ऊँट जियाँईं कलोळो कर्यो स्याळ जी तो बहग्यो अर ऊँट नखळर घराँ चलग्यो।
सीख :- जस्या सूंँ जसी ही करणी चाईजे।
- थाँकी राय द्यो