स्याळ बणग्यो राजो

एक बार की बात छै। एक जंगळ मै एक स्याळ रै छो। वो खुद तो सकार करै कोन छो अर दूसरा का करेड़ा सकार नै खार टेम-पास करै छो। एक बार ऊँनै खाबा बेई कांई भी कोन लाद्‌यो। वो भूखां मरतो एक गांव मै चलग्यो। जद्‌यां होळी को टेम छो। एक आदमी भगुनी मै लाल रंग गोळ मेल्यो छो। स्याळ भूखां म

बना नीम को मकान

एक नगर मै दो सेठ रै छा। एक को नांव घासीराम अर दूसरा को नांव रामफूल छो। वां दोन्यां नै धन-धोलत को घणो घमण्ड छो। एक दन घासीराम, रामफूल सेठ सूं मलबा चलग्यो। घासीराम, रामफूल का मकान नै देखर अछम्बा मै पड़ग्यो। अतरो बडो मकान अर वो भी तीन मजली। गांव का सगळा रामफूल का मकान नै द

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