एक बार एक गाँव मै एक कंजूस आदमी छो। ऊँकन धन खूब छो पण वो एक टको भी न उजाड़ै छो। वो काँई चीज मोल ले छो, तो ऊँ चीज को मोल सो ठोर पै करावै छो। पाछै ऊँ चीज नै ले छो। एक बार वो दस पण्डत जमाबा की बच्यार लियो। वो एक पण्डत नै बलार खियो कै, पण्डतजी, दस पण्डत जमाबा मै कतरो चून लाग जावैलो। पण्डत खियो, बीस किलो चून लाग जावैलो। कंजूस आदमी खियो, थोड़ा खाबाळा आदमी कोनै काँई? पण्डत खियो, दस आँधा नै जमा दै। कंजूस खियो, वाँकी खुराक कतरी छै? पण्डत खियो, दस किलो। कंजूस खियो, पण्डतजी थे दस आँधा नै नूत दीज्यो।
पण्डत दस आँधा नै नूत दियो। दस आँधा नै लेर आबा कै ताणी दस आदमी ओर आग्या। कंजूस खियो कै, पण्डतजी मै म्ह तो दस आदमी बेई खियो छो। पण्डत बोल्यो कै, ये सगळा न्यारा-न्यारा गाँव मै सूँ आया छै। जिसूँ एक आँधा नै एक आदमी लेर आयो छै। पाछै वो कंजूस बच्यार लगायो कै याँ आँधा की बजाई तो बीस पण्डत जमा देता तो चोखा रहता। आपाँ बीस आदम्याँ नै जमावाँला अर नाँव दस आदम्याँ को ही हैलो।
सीख :- चत्तर भैंस, खाबड़ो लोटै छै।
- थाँकी राय द्यो