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आप बिना नहीं आसरो, जज तारण जगदीस।
सतगुरु परमानन्द कै, म्ह चरण झुकाऊँ सीस॥
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च्यार दना री चाँदणी, वो झूँटो संसार।
सुरताँ तू पीयर बसी, भूल गई भरतार॥
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सतगुरु बादळ परेम का अर घटा चडी घणघोर।
अमरत बून्द बरसण लागी, बीजण लागी ठोर॥
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कथा करम नै बाँचलै, लिख्या विदाता लेख।
कलम कच्ची करतार की, तो गलती लिख्या नै एक॥
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च्यार पैर धन्दा गया, ओर तीन पैर गया सोई।
एक पैर हरि ना भजे, थारी मुक्ति कहाँ सूँ होय॥
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राम भजन कर मानवी तो, चलणा है भव तीर।
बार-बार मलता नहीं, तेरा मानुस देही सरीर॥
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राम नांव के कारणे, सब धन दिया लुटाई।
मूरख मन मै खो दिया तो, दन-दन दूणा आई॥
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मन लोबी मन लालची, मन चंचल मन चोर।
मन कै मतै नहीं चालणो, मन पलक-पलक मै ओर॥
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साईब थारी साईबी सब घट रई समाई।
ज्यूँ मेन्दी का पात मै लाली रई छुपाई।
साईब तुज मै यूँ बसै, ज्यूँ तिल्ली मै तेल।
ग्यान की घाणी फिराई के, फेर देख ईंको खेल॥
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सतगुरु मेरा बाणियाँ, बिणज करै बोपार।
तन डांडी, मन पालड़ा, तोल लिया संसार॥
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राम नांव की एक झोपड़ी अर पापी का दस गाँव।
आग लगो ऊन गांव को जाँ नहीं भगवान का नांव॥
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सतगुरु जी रा नांव सूँ, भाई आई बला टळ जाई।
मस्तक मै सूळी लागै, वा काँटा सूँ टळ जाई॥
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राम किसी को नहीं मारता, नहीं राम का काम।
अपणे- आप मर जात है, कर-कर खोटा काम॥
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सादू नै झोला सबद का, नर नै झोला नार, दीपक नै झोला हवा का, भाई किंणविद उतरूँ पार।
सादू नै सबद मलै, नर नै मलज्या नार, दीपक नै मण्डप मिलज्या भाई, ईंणविद उतरो पार॥
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सतवन्ती पियर बसै, सदाँ पिव का ध्यान।
खहत सुणत लाजाँ मरै तो, येसा आत्म ग्यान॥
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धरम बिचारो भगत जनो, तो बनो धरम का दास।
सच्चे मन सूँ सब जन त्यागो, गाँजा मदिरा माँस॥
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आजा सतगुरु की सरण मै, सब सनस्य दे छोड़।
राम मिलादे पलक मै, गुरु यम की फन्दी तोड़॥
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उपट माळ नहीं चालणो, पगाँ मै भागै सूळ।
सूळ भाग पग सूजज्या, हैज्या मानव की धूळ॥
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तुळसी ईं संसार मै, कर लीज्यो दो काम।
देणे को टुकड़ो भलो, लेणे को हरि नांव॥
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कळयुग मै देखै कहीं कपटी भगत सुजान।
ग्यानी-ध्यानी बणै तो बुगला कै समान॥
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अबार की राय