चरड़-मरड़ की जूती पहरै, चोमू सहर कचोळ्या की॥(टेर)


लाल गिटी का चूड़ा पहरै माहर ओर सामोत की।
नथली पहरै नाक चडावै, बै बाँसा का नेड़ा की॥
चरड़-मरड़ की जूती पहरै, चोमू……॥(1)


मोटा-मोटा बोर बेचै, दोलपरा बगवाड़ा की।
सगा कसम कै जूता मारै, काळवाड़ मुड़ोता की॥
चरड़-मरड़ की जूती पहरै, चोमू……॥(2)


काठी बेचर ल्यावै कणुका, नींदड़ ओर हरमाड़ा की।
पीडा पै बैठी रोटी खावै छार्यां चकवाड़ा की॥
चरड़-मरड़ की जूती पहरै, चोमू……॥(3)


पाँवणा नै पावै राबड़ी, हस्तेड़ा भूतेड़ा की।
सारै दनभर खार सोती, घिणोईं का नेड़ा की॥
चरड़-मरड़ की जूती पैरै, चोमू……॥(4)


उण्डी-उण्डी रोटी पोवै, घी घालै ईटावा की।
या कथा खियो बत्‍तीस गाँवाँ की॥
चरड़-मरड़ की जूती पैरै, चोमू……॥(5)