एक बार एक लळ्ड्याँ चराबाळो गुवाळ्यो छो। वो नतकई वाँ लळ्ड्याँ नै चराबा माळ मै जावै छो। उण्डै साँकड़ै ईं खेताँ मै आदमी काम कर्या छा। एक दन वो गुवाळ्यो मजाक करबा की सोच्यो अर वो जोर-जोर सूँ बळ्ळाबा लागग्यो, “ल्याळी आग्यो, ल्याळी आग्यो, बचावो-बचावो।” गाँव का आदमी भाग्या-भाग्या आर देख्या तो उण्डै काँई भी कोन छो अर वो गुवाळ्यो बोल्यो, बहखग्या रै, बहखग्या। गाँव का पाछाई चलग्या। थोड़ा दना पाछै उण्डै साँस्याँई एक ल्याळी आग्यो अब वो गुवाळ्यो जोर-जोर सूँ बळायो, “ल्याळी आग्यो, ल्याळी आग्यो, बचावो-बचावो।” ईं बार गाँव का सोच्या कै पैल्याँ भी यो गुवाळ्यो झूँट बोल्यो छो या सोचर कोई भी आदमी न आयो। ल्याळी ऊँ गुवाळ्या की घणी सारी लळ्डयाँ नै मार दियो। गुवाळ्यो घणो रोयो अर मन ही मन मै घणो पसतायो।
सीख :- कद्याँ भी झूँट न बोलणो चाईजे।
- थाँकी राय द्यो