साधु भाई बिना निवण कुण तरिया।
आदु रै पन्त नवळ पद मोटा, साद सन्तां की करिया।
हरि जन बिना निवण कुण तरिया॥(टेर)


च्यार जुगां की, च्यार चोकड़ी गणपत आसण धरिया।
आसण माण्ड अगड होई बैठ्या, सहजांईं सुमरण करिया॥
हरि जन बिना निवण कुण तरिया……॥(1)


नमो-नमो रै म्हारा, मात-पिता नै, उतपत्‍ति पैदा करिया।
घणी नमो रै म्हारी, धरती माता नै, ज्यांकै ऊपर फरिया॥
हरि जन बिना निवण कुण तरिया……॥(2)


नमो-नमो रै म्हारा गुरां-पीरां नै, हिरदे उजाळा करिया।
नमो-नमो रै म्हारा गुरां-पीरां नै, नांव नाबी मै धरिया॥
हरि जन बिना निवण कुण तरिया……॥(3)


ऊंच-नीच एक सारा रै भरिया, उनका समरण करिया।
घणी नमो रै म्हारा, सादां की संगत नै, ज्यांमै बैठ सुदरिया॥
हरि जन बिना निवण कुण तरिया……॥(4)


समज्या रै ज्यांकी भरमना रै भागी, खाली नर खरवड़िया।
भेळा हुया रै, भड़ाभड़ माची रै, आमा-सामा लड़िया॥
हरि जन बिना निवण कुण तरिया……॥(5)


सतगुरु दाता आता दिख्या, इन्दर ज्यूं उलर्याया।
ऊंच-नीच एक सारा रै बरसै, सबका पालन करिया॥
हरि जन बिना निवण कुण तरिया……॥(6)


बिना पाळ एक सरवर भरिया, कुण डूब्या-कुण तरिया।
हाथ जोड़कर माळी बोलग्या लखमजी, भंवर जाळ सूं टळिया॥
हरि जन बिना निवण कुण तरिया……॥(7)