नरा दना पैली की बात छै। एक गांव मै दो भाई छा। बडो भाई घणो भागवान अर छोटो घणो गरीब छो। बडा भाई कै कांई भी कमी कोन छी अर छोटा कन खाबा बेई दाणा भी कोन छा। दुवाळी को दन छो। बडा भाई का छोरा-छोरी फटाका छुडार्या छा। सारा गांव मै खुसी छारी छी। न्यारा-न्यारा पकवान बणार्या छा। पण छोटा भाई कै घर मै तो सण्णाटो छार्यो छो। ईं सब नै देखर छोटो भाई घणो उदास छो। छोटो भाई गेला मैर जार्यो छो, तो ऊँनै एक बूडो आदमी मल्यो। वो बोल्यो, “भाई आज तो दुवाळी छै सारो गांव खुसी मनार्यो छै अर तू घणो दुखी छै।” छोटो भाई बोल्यो, “कांई की दुवाळी, बाबा म्हारै घरां तो खाबा बेई चून भी कोनै।” म्हारी कोई भी सायता कोन करै। म्हारा छोरा-छोरी भूखां मरर्या छै अर म्ह कांई भी कोन कर सक्यो। बूडो आदमी बोल्यो, “बेटा म्ह थारी सायता करूंलो।” तू ईं लकड़ी का भारा नै म्हारै घरां मेल्या। छोटो भाई ऊँ लकड़ी का भारा नै मेलबा चलग्यो। बूडो आदमी खियो कै, “बेटा जंगळ मै तीन बोना आदमी रैवै छै, वानै पुवा घणा पसन्द छै। म्ह तन ये पुवा देर्यो छूँ, तू जार ये पुवा वानै दे दीज्यो अर वांकन सूं भाटा की जातण मांगलीज्यो।” छोटो भाई जंगळ मै गियो उण्डै ऊँनै तीन बोना मल्या। वो सारा पुवा वानै दे दियो अर वानै खियो कै, मन भाटा की जातण देद्यो। वै बोना छोटा भाई नै भाटा की जातण देर खिया, “ईनै फेरर तू ज्यो मांगैलो, या जातण वाई चीज नखाळै ली। काम मै लियां पाछै ईनै लाल लत्ता सूं ढक दीज्यो या बन्द है जावैली।”
छोटो भाई जातण लेर घरां आग्यो। घरां आर वो जातण नै फेरर खियो, जातण-जातण चावळ नखाळ। जातण महर चावळ आग्या। वो फेर खियो, जातण-जातण दाळ नखाळ, दाळ आगी। अब ऊँपै लाल लत्तो पटकर बन्द कर दियो अर सारा घरका दाळ चावळ बाणार खाया। अब नतकई नई-नई (दाळ चावळ, मसालो, चून अर घणी सारी चीजां) नखाळर बजार मै बेचबा लागग्यो। छोटो भाई खूब भागवान हैग्यो। निया लत्ता, मकान, डाण्डा-ढोर, यानी सब कुछ हैग्या बडो भाई सोच्यो कै, काल तक ईंकन खाबा बेई दाणा भी कोन छा अर आज ईंकै अस्यो कांई हाथ लागग्यो ज्यो अतरो भागवान हैग्यो। एक दन बडो भाई लुखर ऊँ जातण मै सूं सामान नखाळतो देख लियो। वो ऊँनै चोरबा की सोच्यो। वो रात नै उठर ऊँ जातण नै चोरर लियायो अर घर मै आर सारा सामान नै बांद लियो। सारा सामान नै लेर एक नाव मै बैठर, कोई टापू मै बसबा का इरादा सूं चाल पड़्यो। ऊँकी लुगाई सोची कै, यो आपां नै कोडै लेर जार्यो छै,“तो वो अपणी लुगाई नै बताबा कै ताणी वो जातण नै फेरर खियो, “जातण-जातण लूण नखाळ।” अब जातण सूं लूण नखळबा लागग्यो। ऊँनै जातण नै डाटबो कोन आवै छो। पूरी नाव लूण सूं भरर डूबगी। खेवै छै कै, “वा जातण आज भी चालरी छै, जिसूं समुदर खारो छै।”
सीख: -कद्यां भी चोरी न करणो चाईजे।
- थाँकी राय द्यो