एक गांव मै बदरी नांव को आदमी छो। वो एक गण्डकड़ो पाळ मेल्यो छो। वो गण्डकड़ो एक दन बेमार पड़ग्यो अर थोड़ा दना पाछै मरग्यो। गण्डकड़ा नै मर्यां पाछै बदरी भी बेमार पड़ग्यो। एक दन बदरी कै घरां एक पण्डत आग्यो अर बदरी नै खियो कै, तू पाप कर्यो छो, जिसूं बेमार हियो छै। बदरी खियो कै, ये पाप कियां मटैला। पण्डत बोल्यो “पूजा-पाठ कराबा सूं थारा सगळा पाप मटज्याला।” बदरी बोल्यो, पूजा-पाठ कुण करैलो? पण्डत बोल्यो, “पूजा-पाठ तो म्ह करद्यूंलो पण मन एक घोड़ा को मोल देणो पड़ैलो।” बदरी पण्डत नै एक घोड़ा को मोल देबा बेई खै दियो।
पण्डत झूंटमाट पूजा-पाठ कर दियो अर बदरी सूं पीसा मांगबा लागग्यो। बदरी ऊँका घोड़ो नै एक सहर मै बेचबा चलग्यो। एक हाथ मै घोड़ा नै पकड़्यां छो अर एक हाथ मै एक टोकरी पकड़्यां छो। पण्डत भी बदरी कै लैरै छो। बदरी खियो कै, यो घोड़ो बकाव छै, च्याराना को घोड़ो छै अर एक लाख की टोकरी छै, या टोकरी घोड़ा कै लैरै छै। जे ईं घोड़ा नै लेलो ऊँनै या टोकरी भी लेणी पड़ैली। थोड़ी बार पाछै एक आदमी घोड़ा नै अर टोकरी नै ले लियो। बदरी एक लाख रफ्या नै तो, थेला मै मेल लियो अर च्याराना पण्डत नै दे दियो। पण्डत च्याराना लेर घणो दुखी हियो अर मन मै बच्यार लगायो कै, कद्यां भी पाखण्ड नै करणो चाईजे।
सीख :- जस्या सूं जसी ई करणी चाईजे।
- थाँकी राय द्यो