ढोला ढोल मंजीरा बाजे रै।
काळी छींट को घागरो नजारा मारे रै॥(टेर)
साठ कळी को घागरो जी कळी-कळी मै फेर।
पहर बजाराँ नखळगी जी, रफ्या को हैग्यो ढेर॥
ढोला ढोल मजीरा बाजे रै, काळी……॥(1)
म्ह थानै घणी खी छी, भगतण कै मत जाई।
टको लगावै गाँठ को जी, रोग लगार आई॥
ढोला ढोल मजीरा बाजे रै, काळी……॥(2)
म्ह थानै घणी कही जी,परदेसाँ मत जाई।
परदेसाँ की पर नजर्यां सूँ, मतना परेम जगाई॥
ढोला ढोल मजीरा बाजे रै, काळी……॥(3)
फूल बागाँ मै छोर्यां नाचै, तबला सारँगी बजाई
झिरमर-झिरमर मेवा बरसे, काळा बादळ घरणाई॥
ढोला ढोल मजीरा बाजे रै, काळी……॥(4)
जेपर का बजार मै रै पड़्यो पेमली बोर।
नीची लळर उठाबा लागी, आग्यो कमर नै जोर॥
ढोला ढोल मजीरा बाजे रै, काळी……॥(5)
- थाँकी राय द्यो