एक गाँव मै एक पाँवणा नाँव को आदमी छो। वो पाळो-पाळो ऊँका मामा कै जार्यो छो। ऊनै गैला मै रात हैगी अर वो एक पाळती कै घराँ चलग्यो। पाळती ऊँनै पूच्यो कै थारो काँई नाँव छै। वो बोल्यो, म्हारो नाँव पाँवणो छै। पाळती ऊन रात मै ऊँकै घराँ राँख लियो। पाळती की लुगाई को नाँव सुगना छो अर ऊँकै एक छोरी छी, जिंको को नाँव तारा छो। दूसरै दन पाळती सुवाँरई बेगोई बळदा नै लेर खेत मै हळ बाहबा चलग्यो। पाळती तारो को ब्याव बाळपणा मैईं कर दियो छो। पहल्याँ का जमाना मै सासू पाँवणा सूँ बोलै कोन छी। जिसूँ सुगना बच्यार लगाई कै, पाँवणो तो छोरी नै लेबा आग्यो। सुगना तो छोरी नै निया लत्‍ता पहरार पाँवणा कै लैरै खन्दादी अर थोड़ी बार पाछै पाळती की रोटी लेर खेत पै चलगी।

पाळती सुगना नै खियो, अतरी मोड़ी कियाँ आई छै? सुगना बोली, छोरी नै पाँवणा कै लैरै खन्दार आई छूँ। पाळती खियो, कस्या पाँवणा कै लैरै खन्दादी छोरी नै? सुगना बोली, आपणै घराँ आयो छो नै, जिंकै लैरै। पाळती बोल्यो, वो तो कणा कुण छो? ऊँको तो नाँव पाँवणो छो। सुगना बोली मन काँई ध्यान वो कोई वोर छो। थे ऊनै पाँवणो-पाँवणो बोलर्या छा, जिसूँ मै सोची कै तारा को पाँवणो हैलो।

पाळती खेत मै ही सूँज नै छोड दियो अर घराँ आर बाड़ा मै बन्देड़ा घोड़ा पै बैठर पाँवणा कै पाछै गियो पण वो पकड़ मै न आयो। फेर वो एक पहलवान नै खियो, यो घोड़ो लेर जा, आगै म्हारी छोरी अर पाँवणो मलैला, वानै पकड़लै। वो पहलवान घोड़ा नै जोर सूँ दोड़ार पाँवणा नै पकड़ लियो। पाँवणो बोल्यो, मन जाबादै, म्ह घोड़ो कोन लेर जाऊँ। म्हारा पहली ही नरा नोहर्रा कर्या छा, म्ह जद्‍याँईं लिया तो घोड़ा नै। “पहलवान सोच्यो कै, है सकै छै, पाळती ईं घोड़ा नै देबा कै तोड़ी ही पाँवणा नै पकड़बा बेई खियो है।” पहलवान बोल्यो, देख पाँवणा यो घोड़ो तो तोनै लेर ही जाणो पड़ैलो। पाँवणो खियो, थे न मानै तो, ले जाऊँलो घोड़ा नै। पाँवणो घोड़ा पै तारा नै बठाणर लेर खुद कै घराँ चलग्यो।

थोड़ी बार पाछै पहलवान, पाळती कन आयो तो, पाळती ऊनै खियो, घोड़ो कोडै छै। पहलवान बोल्यो, घोड़ो तो पाँवणा नै दियायो। पाळती खियो, म्ह तो पाँवणा नै रोकबा बेई खियो छो अर तू तो म्हारा घोड़ा नै भी दियायो। पाँवणा कै तो चोखो काम हैग्यो।

सीख :- कसी भी बात नै भर्या भरम मै न राँखणो चाईजे।