आवअ न जावअ न मरअ नईं जनमअ
आवअ न जावअ, मरअ नईं जनमअ।
नईं धूप, नईं छाया, कबीर म्हानअ एसा अणघड़ ध्याया॥(टेर)
धरती नईं ज्यां जनम धारिया, नीर नईं ज्यां न्हाया।
दाई-माई का काम नईं छा, ना कोई गोद खिलाया॥
कबीर म्हानअ एसा अणघड़ ध्याया……॥(1)
- आगअ ओर पडो
- थांका बच्यार द्यो
अबार का बच्यार