एक बार की बात छै। एक गरीब पाळती छो। ऊँकै एक छोरो छो। पाळती ऊँ छोरा को ब्याव करबा को बच्यार लगायो। पाळती घणो गरीब छो, जिसूँ ऊँका छोरा को ब्याव कोन हैर्यो छो। एक दन पाळती गाँव का नै भेळा कर लियो अर खियो कै, मन थोड़ा दना कै ताणी भागवान बणावो, जिसूँ म्हारा छोरा को ब्याव है जावै।

      सगळा गाँव का मलर पाळती नै एक चोखो घर दे दिया अर सगळा का ढाण्डा-ढोराँ नै पाळती कै घराँ बान्द दिया। सगळा गाँव का पाळती नै नरो सारो धन-दोलत देर थोड़ा दना कै ताणी राजो बणा दिया। एक दन पाळती एक राजा कै घराँ चलग्यो। राजा नै खियो कै, थाँकी छोरी की सगाई म्हारा छोरा कै करद्‌यो, म्ह म्हारी नगरी को राजो छूँ। राजो बोल्यो, थारकन काँई-काँई छै? पाळती बोल्यो, म्हारकन पानसो बीगा जमी अर नरो धन-दोलत अर घणा सारा ढाण्डा-ढोर छै। राजो छोरी को ब्याव पाळती का छोरा कै लैरै कर दियो अर घणो सारो धन-दोलत दियो। पाछै पाळती खूब भागवान हैग्यो।

सीख :- अक्ल बडी है छै।