एक बार एक टोप्याँ बेचबाळो छो। वो गाँव-गाँव जार टोप्याँ बेचै छो। एक दन घणी गरमी छी। जिसूँ वो एक रूँखड़ा कै तळै साँस खाबा लागग्यो अर ऊनै नन्दरा आगी। रूँखड़ा पै घणा सारा बान्दरा छा। वै बान्दरा रूँखड़ा पै सूँ तळै उतर्र ऊँ टोप्याँ बेचबाळा की गाँठड़ी खोलर ऊँमै सूँ टोप्याँ नै नखाळ लिया अर एक-एक टोपी पहर लिया। अतरामैईं वो जागग्यो, जागताँई ऊँनै टोप्याँ नै मली तो वो अण्डि-उण्डी देख्यो। जद वो उपरै देख्यो तो सगळा बान्दरा ऊँकी टोप्याँ नै पहर्यां छा। बान्दरा देखताँई ऊँनै घणो रोस आयो। आखरी मै ऊँनै एक तरकीब सुझी कै बान्दरा दूसरा की नकल करबा मै पक्‍का है छै। वो ऊँकी टोपी नै उतार्र फैंक दियो, तो सगळा बान्दरा भी अपणी-अपणी टोप्याँ नै उतार्र फैंक दिया। वो सगळी टोप्याँ नै भेळी कर्र टोप्याँ की गाँठड़ी नै लेर गाँव मै बेचबा चलग्यो।
    सीख :- अकल बडी है छै।