एक बार एक गाँव मै एक दरजी छो, ऊँको नाँव गोकल छौ। ऊँकन एक मदन नाँव को पाळती कुड़तो सुँवाँबै आग्यो। गोकल ऊँ कपड़ा नै देखर खियो कै, यो कपड़ो तो ओछो छै। ईंको कुड़तो कोन बणै। वो पाळती,  दूसरा दरजी कन चलग्यो, ऊँको नाँव बदरी छो। का । बदरी ऊँ कपड़ा नै देखर खियो कै, थारो कुड़तो बणज्यालो।

    थोड़ा दना पाछै वो आदमी ऊँ कुड़ता नै लेबा चलग्यो। बदरी ऊँ कुड़ता मै सूँ कपड़ो बचार ऊँका छोरा कै बुरसेट बणार पैरा मेल्यो छो। पाळती ऊँ बुरसेट नै देख लियो अर बच्यार लगायो कै, यो बुरसेट तो आपणा कुड़ता मै सूँ बचायेड़ो कपड़ो छै। पाळती मन मै बच्यार लगार गोकल दरजी कन चलग्यो अर ऊनै खियो, तू तो म्हारा कुड़ता का कपड़ा नै कम बतार्यो छो। बदरी तो ऊँ कपड़ा मै सूँ ऊँका छोरा कै भी बुरसेट बणा दियो। या बात सुणर गोकल दरजी खियो, ऊँको छोरो केक साल को छै? पाळती बोल्यो, दो साल को। गोकल खियो, “अब आगी म्हारै समझ मै जिसूँ ही वो बणा दियो। म्हारो छोरो तो सात साल को छै।” पाछै वो पाळती जाणग्यो कै ये दरजी तो खुद को गोळो सेकै छै।

सीख:- खुद का लालच कै ताणी दूसरा को नुकसान न करणो चाईजे।