बीरबल को चातरकपणो

एक बार की बात छै, अकबर का दरबार मै नरा सारा दरबारी छा। ज्याँमै सूँ अकबर, बीरबल नै घणो चावै छो। अकबर का दरबारी बीरबल नै देखर बळै छा। एक दन सगळा दरबारी बोल-बतळार बीरबल नै नखाळबा को बच्यार कर लिया। बीरबल घणो चातरक छो, ऊँकै आगै सब दरबार्यां नै हार मानणी पड़ै छी। एक दन अकबर

रुई की चोरी

एक बार अकबर रुई को भण्डारो भर लियो। वो भेळी करेड़ी रुई नै सूत बाणाबा बेई गाँव का कारीगराँ नै लगा दियो। सगळा कारीगर नतकई रुई को सूत बणार बादस्या नै देदे छा। बादस्यो बदला मै वानै पीसा देदे छो, जिसूँ कारीगराँ को गुजारो हैज्या छो। अकबर कै सूत बणाबा सूँ घाटो हैग्यो। अकबर मन

साँच की जीत

एक बार एक राजो छो। वो गाँव कै बीच मै कोई कै दंगो हैज्या छो, तो ऊँको न्याई करै छो। एक दन दो लुगायाँ सुगना अर मंगळी एक बाळक पै लड़ पड़ी। सुगना तो खहछी म्हारो छै अर मंगळी खहछी म्हारो छै। दोनी लुगायाँ घाडी लड़ी अर वाँकी पार नै पड़ी तो वै दोनी ऊँ राजा कन चलगी। राजो दोनी लुगा

एक कागलो अर एक लूँगती

एक बार एक लूँगती छी। वा घणी भूखी छी। वा खाणा कै ताणी अण्डि-उण्डी भटकरी छी। भटकताँ-भटकताँ वा एक बाग मै चलगी। बाग मै एक रूँखड़ा पै एक कागलो बैठ्‍यो छो। कागला की चूँच मै एक रोटी छी। लूँगती रोटी नै देखताँई ऊँका मूण्डा मै पाणी आग्यो। वा ऊँ रोटी नै खाबो चाई। लूँगती एक बच्यार

Subscribe to