एक लूँगती अर एक मुरगो

एक बार एक मुरगो नीमड़ी पै बैठ्‍यो छो। उण्डै एक लूँगती आई अर मुरगा नै बोली, अरै मुरगा तू रूँखड़ा पै कियाँ बैठ्‍यो छै। आज तो सब जन्दावराँ मै समझोतो हैग्यो। अब कोई भी एक-दूसरा नै कोन खावै। मुरगो ऊँचो हैर देख्यो तो, ऊँनै एक गण्डकड़ो आतो दिख्यो। लूँगती बोली, अरै तू काँई देखर

एक लोभी गण्डकड़ो

एक बार एक गण्डक छो। वो घणो भूखो छो। वो खाणा कै ताणी अण्डि-उण्डी भहरार्यो छो। भहराताँ-भहराताँ ऊनै एक रोटी को टूकड़ो मल्यो। वो ऊँ टूकड़ा नै लेर एक नन्दी की कन्दार कै सार्रै-सार्रै जार्यो छो। गण्डक नन्दी का पाणी ओड़ी देख्यो तो, पाणी मै ऊँनै ऊँकी छाया दीखी। लालची गण्डकड़ो प

एक झूंटो गुवाळ्यो

एक बार एक लळ्ड्याँ चराबाळो गुवाळ्यो छो। वो नतकई वाँ लळ्ड्याँ नै चराबा माळ मै जावै छो। उण्डै साँकड़ै ईं खेताँ मै आदमी काम कर्या छा। एक दन वो गुवाळ्यो मजाक करबा की सोच्यो अर वो जोर-जोर सूँ बळ्ळाबा लागग्यो, “ल्याळी आग्यो, ल्याळी आग्यो, बचावो-बचावो।” गाँव का आदमी भाग्या-भाग

संगठन मै सक्‍ति

एक बार एक पाळती छो। ऊँकै च्यार‌ छोरा‌ छा। वै नतकई लड़ता रह छा। वाँको बाप वानै घणो समझावै छो, पण वै लड़ता कोन मानै छा। थोड़ा दना पाछै पाळती बेमार पड़ग्यो। वो ऊँका छोराँ नै बलायो अर वानै एक लकड़्याँ को भारो दियो। वो पाळती वानै वो भारो तोड़बा बेई खियो। कोई भी ऊँ भारा नै तो

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