एक टोप्याँ बेचबाळो अर बान्दरा

    एक बार एक टोप्याँ बेचबाळो छो। वो गाँव-गाँव जार टोप्याँ बेचै छो। एक दन घणी गरमी छी। जिसूँ वो एक रूँखड़ा कै तळै साँस खाबा लागग्यो अर ऊनै नन्दरा आगी। रूँखड़ा पै घणा सारा बान्दरा छा। वै बान्दरा रूँखड़ा पै सूँ तळै उतर्र ऊँ टोप्याँ बेचबाळा की गाँठड़ी खोलर ऊँमै सूँ टोप्याँ

एक ऊँट अर एक स्याळ

एक बार एक ऊँट अर एक स्याळ दोनी बायेला छा। एक दन वै दोनी एक खेत मै काकड़ी खरबूजा खाबा चलग्या। स्याळ तो बेगो-सोक धापग्यो अर वो ऊँट नै खियो कै, बायेला मन तो हूँकबा की मनमै आरी छै। ऊँट बोल्यो, बायेला डटजा म्ह हालताणी धाप्यो कोनै, थोड़ी देर पाछै हूँक लिज्यो। पण स्याळ तो हूँक

चमत्कारी मून्दड़ी

एक बार एक गाँव मै एक सोपाल नाँव को आदमी रै छो। वो एक नन्दी मै सूँ मच्‍छ्याँ नखाळर अपणा बाळकाँ नै पाळै छो। एक दन वो नन्दी मै मच्‍छ्याँ नखाळबा गियो तो जाळ मै मच्‍छ्याँ तो आई कोनै अर एक कापचो जाळ मै उळजर आग्यो। सोपाल ऊँ कापचा नै नन्दी की डाई प

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